हर-चंद मिरी क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार है महबूस
ख़ामोश मगर तब-ए-ख़ुद-आरा नहीं होती
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26/जानवरी
अहल-ए-दिल और भी हैं
वैसे तो तुम्हीं ने मुझे बर्बाद किया है
लम्ह-ए-ग़नीामत
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
फ़रार
जहाँ जहाँ तिरी नज़रों की ओस टपकी है
कोई दिल की चाहत से मजबूर है
शहकार
वो सुब्ह कभी तो आएगी
ये महलों ये तख़्तों ये ताजों की दुनिया