गर ज़िंदगी में मिल गए फिर इत्तिफ़ाक़ से
पूछेंगे अपना हाल तिरी बेबसी से हम
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मैं ने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
सर-ज़मीन-ए-यास
ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है
दुल्हन बनी हुई हैं राहें
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ज़िंदगी-भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात
तुम मेरे लिए अब कोई इल्ज़ाम न ढूँडो
किसी को उदास देख कर
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
रंगों में तेरा अक्स ढला तू न ढल सकी
धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं