दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या
आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से
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तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
जीवन के सफ़र में राही
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
लश्कर-कुशी
एक मुलाक़ात
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
कोई तो ऐसा घर होता जहाँ से प्यार मिल जाता
दुनिया ने तजरबात ओ हवादिस की शक्ल में
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
लम्ह-ए-ग़नीामत