चंद कलियाँ नशात की चुन कर मुद्दतों महव-ए-यास रहता हूँ
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
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सुब्ह-ए-नौ-रूज़
नाकामी
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
रद्द-ए-अमल
तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
ऐ शरीफ़ इंसानो
नूर-जहाँ के मज़ार पर
तपते दिल पर यूँ गिरती है
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
भूले से मोहब्बत कर बैठा, नादाँ था बेचारा, दिल ही तो है
शिकस्त
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी