बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है
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मिरे दिल में आज क्या है तू कहे तो मैं बता दूँ
ख़ुदा-ए-बर्तर तिरी ज़मीं पर ज़मीं की ख़ातिर ये जंग क्यूँ है
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
हम से अगर है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो क्या हुआ
'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो
अब आएँ या न आएँ इधर पूछते चलो
मेरे ख़्वाबों में भी तू मेरे ख़यालों में भी तू
उन का ग़म उन का तसव्वुर उन के शिकवे अब कहाँ
तरब-ज़ारों पे क्या गुज़री सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
मैं पल दो पल का शाइ'र हूँ
अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफ़ा और भी हैं
ख़ूबसूरत मोड़