अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं
तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी
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तरह-ए-नौ
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
ताज-महल
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
अपना दिल पेश करूँ अपनी वफ़ा पेश करूँ
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
मैं नहीं तो क्या
तुम्हारे अहद-ए-वफ़ा को मैं अहद क्या समझूँ
हिरास