अँधेरी शब में भी तामीर-ए-आशियाँ न रुके
नहीं चराग़ तो क्या बर्क़ तो चमकती है
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(676) Peoples Rate This
हम-अस्र
अपने अंदर ज़रा झाँक मेरे वतन
बे पिए ही शराब से नफ़रत
प्यार का तोहफ़ा
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
आज
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
मैं जब भी अकेली होती हूँ तुम चुपके से आ जाते हो
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
बरसो राम धड़ाके से
लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
बहुत घुटन है कोई सूरत-ए-बयाँ निकले