वो सुब्ह कभी तो आएगी

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वो सुब्ह कभी तो आएगी

इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा

जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर छलकेगा

जब अम्बर झूम के नाचेगा जब धरती नग़्मे गाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

जिस सुब्ह की ख़ातिर जग जग से हम सब मर मर कर जीते हैं

जिस सुब्ह के अमृत की धुन में हम ज़हर के प्याले पीते हैं

इन भूकी प्यासी रूहों पर इक दिन तो करम फ़रमाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

माना कि अभी तेरे मेरे अरमानों की क़ीमत कुछ भी नहीं

मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर इंसानों की क़ीमत कुछ भी नहीं

इंसानों की इज़्ज़त जब झूटे सिक्कों में न तौली जाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा

चाहत को न कुचला जाएगा ग़ैरत को न बेचा जाएगा

अपने काले करतूतों पर जब ये दुनिया शरमाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के

टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के

जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाई जाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

मजबूर बुढ़ापा जब सूनी राहों की धूल न फाँकेगा

मासूम लड़कपन जब गंदी गलियों में भीक न माँगेगा

हक़ माँगने वालों को जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

फ़ाक़ों की चिताओं पर जिस दिन इंसाँ न जलाए जाएँगे

सीनों के दहकते दोज़ख़ में अरमाँ न जलाए जाएँगे

ये नरक से भी गंदी दुनिया जब स्वर्ग बनाई जाएगी

वो सुब्ह कभी तो आएगी

2

वो सुब्ह हमीं से आएगी

जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे

जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे

उस सुब्ह को हम ही लाएँगे वो सुब्ह हमीं से आएगी

वो सुब्ह हमीं से आएगी

मनहूस समाजी ढाँचों में जब ज़ुल्म न पाले जाएँगे

जब हाथ न काटे जाएँगे जब सर न उछाले जाएँगे

जेलों के बिना जब दुनिया की सरकार चलाई जाएगी

वो सुब्ह हमीं से आएगी

संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे

बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे

दुनिया अम्न और ख़ुश-हाली के फूलों से सजाई जाएगी

वो सुब्ह हमीं से आएगी

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In Hindi By Famous Poet Sahir Ludhianvi. is written by Sahir Ludhianvi. Complete Poem in Hindi by Sahir Ludhianvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.