नाकामी
मैं ने हर चंद ग़म-ए-इश्क़ को खोना चाहा
ग़म-ए-उल्फ़त ग़म-ए-दुनिया में समोना चाहा
वही अफ़्साने मिरी सम्त रवाँ हैं अब तक
वही शोले मिरे सीने में निहाँ हैं अब तक
वही ब-सूद ख़लिश है मिरे सीने में हनूज़
वही बेकार तमन्नाएँ जवाँ हैं अब तक
वही गेसू मिरी रातों पे हैं बिखरे बिखरे
वही आँखें मिरी जानिब निगराँ हैं अब तक
कसरत-ए-ग़म भी मिरे ग़म का मुदावा न हुई
मेरे बेचैन ख़यालों को सुकून मिल न सका
दिल ने दुनिया के हर इक दर्द को अपना तो लिया
मुज़्महिल रूह को अंदाज़-ए-जुनूँ मिल न सका
मेरी तख़य्युल का शीराज़-ए-बरहम है वही
मेरे बुझते हुए एहसास का आलम है वही
वही बे-जान इरादे वही बे-रंग सवाल
वही बे-रूह कशाकश वही बेचैन ख़याल
आह इस कश्मकश सुब्ह ओ मसा का अंजाम
मैं भी नाकाम मिरी सई अमल भी नाकाम
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