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माज़ूरी - साहिर लुधियानवी कविता - Darsaal

माज़ूरी

ख़ल्वत-ओ-जल्वत में तुम मुझ से मिली हो बार-हा

तुम ने क्या देखा नहीं मैं मुस्कुरा सकता नहीं

मैं कि मायूसी मिरी फ़ितरत में दाख़िल हो चुकी

जब्र भी ख़ुद पर करूँ तो गुनगुना सकता नहीं

मुझ में क्या देखा कि तुम उल्फ़त का दम भरने लगीं

मैं तो ख़ुद अपने भी कोई काम आ सकता नहीं

रूह-अफ़ज़ा हैं जुनून-ए-इश्क़ के नग़्मे मगर

अब मैं इन गाए हुए गीतों को गा सकता नहीं

मैं ने देखा है शिकस्त-ए-साज़-ए-उल्फ़त का समाँ

अब किसी तहरीक पर बरबत उठा सकता नहीं

दिल तुम्हारी शिद्दत-ए-एहसास से वाक़िफ़ तो है

अपने एहसासात से दामन छुड़ा सकता नहीं

तुम मिरी हो कर भी बेगाना ही पाओगी मुझे

मैं तुम्हारा हो के भी तुम में समा सकता नहीं

गाए हैं मैं ने ख़ुलूस-ए-दिल से भी उल्फ़त के गीत

अब रिया-कारी से भी चाहूँ तो गा सकता नहीं

किस तरह तुम को बना लूँ मैं शरीक-ए-ज़िंदगी

मैं तो अपनी ज़िंदगी का बार उठा सकता नहीं

यास की तारीकियों में डूब जाने दो मुझे

अब मैं शम-ए-आरज़ू की लौ बढ़ा सकता नहीं

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In Hindi By Famous Poet Sahir Ludhianvi. is written by Sahir Ludhianvi. Complete Poem in Hindi by Sahir Ludhianvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.