फ़ौज हक़ को कुचल नहीं सकती
फ़ौज चाहे किसी यज़ीद की हो
लाश उठती है फिर अलम बन कर
लाश चाहे किसी शहीद की हो
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
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ये दुनिया दो-रंगी है
देखा तो था यूँही किसी ग़फ़लत-शिआर ने
ख़ून फिर ख़ून है
'गाँधी' हो या 'ग़ालिब' हो
तुझे भुला देंगे अपने दिल से ये फ़ैसला तो किया है लेकिन
अभी न छेड़ मोहब्बत के गीत ऐ मुतरिब
हमीं से रंग-ए-गुलिस्ताँ हमीं से रंग-ए-बहार
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
मादाम
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
हम जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा पाएँगे तन्हा
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया