ख़ाना-आबादी
तराने गूँज उठे हैं फ़ज़ा में शादयानों के
हुआ है इत्र-आगीं ज़र्रा ज़र्रा मुस्कुराता है
मगर दूर एक अफ़्सुर्दा मकाँ में सर्द बिस्तर पर
कोई दिल है कि हर आहट पे यूँ ही चौंक जाता है
मिरी आँखों में आँसू आ गए नादीदा आँखों के
मिरे दिल में कोई ग़मगीन नग़्मा सरसराता है
ये रस्म-ए-इन्क़िताअ' अहद-ए-उल्फ़त ये हयात-ए-नौ
मोहब्बत रो रही है और तमद्दुन मुस्कुराता है
ये शादी ख़ाना-आबादी हो मेरे मोहतरम भाई
मुबारक कह नहीं सकता मिरा दिल काँप जाता है
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