बंगाल
जहान-ए-कोहना के मफ़्लूज फ़ल्सफ़ा-दानो
निज़ाम-ए-नौ के तक़ाज़े सवाल करते हैं
ये शाहराहें इसी वास्ते बनी थीं क्या
कि इन पे देस की जनता सिसक सिसक के मरे
ज़मीं ने क्या इसी कारन अनाज उगला था
कि नस्ल-ए-आदम-ओ-हव्वा बिलक बिलक के मरे
मिलें इसी लिए रेशम के ढेर बुनती हैं
कि दुख़तरान-ए-वतन तार तार को तरसें
चमन को इस लिए माली ने ख़ूँ से सींचा था
कि उस की अपनी निगाहें बहार को तरसें
ज़मीं की क़ुव्वत-ए-तख़्लीक़ के ख़ुदा-वंदो
मिलों के मुंतज़िमों सल्तनत के फ़रज़ंदो
पचास लाख फ़सुर्दा गले-सड़े ढाँचे
निज़ाम-ए-ज़र के ख़िलाफ़ एहतिजाज करते हैं
ख़मोश होंटों से दम तोड़ती निगाहों से
बशर बशर के ख़िलाफ़ एहतिजाज करते हैं
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