Ghazals of Sahir Ludhianvi
नाम | साहिर लुधियानवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sahir Ludhianvi |
जन्म की तारीख | 1921 |
मौत की तिथि | 1980 |
जन्म स्थान | Mumbai |
ये ज़ुल्फ़ अगर खुल के बिखर जाए तो अच्छा
ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई
ये वादियाँ ये फ़ज़ाएँ बुला रही हैं तुम्हें
तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो
तोड़ लेंगे हर इक शय से रिश्ता तोड़ देने की नौबत तो आए
तिरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएँ
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
तरब-ज़ारों पे क्या बीती सनम-ख़ानों पे क्या गुज़री
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
शर्मा के यूँ न देख अदा के मक़ाम से
सज़ा का हाल सुनाएँ जज़ा की बात करें
संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे
संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है
सदियों से इंसान ये सुनता आया है
पोंछ कर अश्क अपनी आँखों से मुस्कुराओ तो कोई बात बने
पर्बतों के पेड़ों पर शाम का बसेरा है
नफ़स के लोच में रम ही नहीं कुछ और भी है
न तो ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
मोहब्बत तर्क की मैं ने गरेबाँ सी लिया मैं ने
मिलती है ज़िंदगी में मोहब्बत कभी कभी
मेरी तक़दीर में जलना है तो जल जाऊँगा
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
मैं ज़िंदा हूँ ये मुश्तहर कीजिए
लब पे पाबंदी तो है एहसास पर पहरा तो है
क्या जानें तिरी उम्मत किस हाल को पहुँचेगी
ख़ुद्दारियों के ख़ून को अर्ज़ां न कर सके
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं
जो लुत्फ़-ए-मय-कशी है निगारों में आएगा
जब कभी उन की तवज्जोह में कमी पाई गई