तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
हम वफ़ाओं से तौबा करते हैं
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फिर किसी बेवफ़ा की याद आई
दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
वो और होंगे पी के जो सरशार हो गए
बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
टालने से वक़्त क्या टलता रहा
दिल वो सहरा है कि जिस में रात दिन