कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है
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बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो शिकवा बे-सूद
ख़्वाब देखे थे सुहाने कितने
हर एक फूल के दामन में ख़ार कैसा है
टालने से वक़्त क्या टलता रहा
तेरे महल में कैसे बसर हो इस की तो गीराई बहुत है
वो जिस को हम ने अपनाया बहुत है
फिर किसी बेवफ़ा की याद आई
दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
दौर-ए-चर्ख़-ए-कबूद जारी है
हम को अग़्यार का गिला क्या है
तुम न तौबा करो जफ़ाओं से