दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
अहल-ए-कशती ने ख़ुद-कुशी की थी
मेरे मरने की भी उन को न ख़बर दी जाए
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं
दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा
तुम न तौबा करो जफ़ाओं से
बे-हिस के तग़ाफ़ुल का तो शिकवा बे-सूद
ज़िंदगी हम से ख़फ़ा हो जैसे
गाँधी