अपनी अपनी ज़ात में गुम हैं अहल-ए-दिल भी अहल-ए-नज़र भी
महफ़िल में दिल क्यूँकर बहले महफ़िल में तन्हाई बहुत है
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(560) Peoples Rate This
मेरे मरने की भी उन को न ख़बर दी जाए
कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से
शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें
बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
टालने से वक़्त क्या टलता रहा
आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं
झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है
गाँधी