अहल-ए-कश्ती ने ख़ुद-कुशी की थी
हुआ बदनाम नाख़ुदा का नाम
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Gulzar
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Mir Taqi Mir
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Allama Iqbal
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गाँधी
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
नई सुब्ह
हम को मस्ती ओ ख़्वारी आई
तैरेगा फ़ज़ा में जो समुंदर न मिलेगा
इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहीं
दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली
अदू-ए-बद-गुमाँ की दास्ताँ कुछ और कही है
हम क़रीब आ कर और दूर हुए
ज़िंदगी हम से ख़फ़ा हो जैसे