आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
दिल को सुकून मिल ही गया इज़्तिराब में
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
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Parveen Shakir
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Faiz Ahmad Faiz
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कौन कहता है मोहब्बत की ज़बाँ होती है
ख़्वाब देखे थे सुहाने कितने
दर्द-ए-दिल भी कभी लहू होगा
हम को मस्ती ओ ख़्वारी आई
शाम को सुब्ह अँधेरे को उजाला लिक्खें
फिर किसी बेवफ़ा की याद आई
झूमी है हर इक शाख़ सबा रक़्साँ है
अपनी अपनी ज़ात में गुम हैं अहल-ए-दिल भी अहल-ए-नज़र भी
इश्क़ क्या चीज़ है ये पूछिए परवाने से
ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला
दुनिया में हर क़दम पे हमें तीरगी मिली