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ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला - साहिर होशियारपुरी कविता - Darsaal

ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला

ग़म का सहरा न मिला दर्द का दरिया न मिला

हम ने मरना भी जो चाहा तो वसीला न मिला

मुद्दतों बा'द जो आईने में झाँका हम ने

इतने चेहरे थे वहाँ अपना ही चेहरा न मिला

क़त्ल कर के वो ग़नीमों को जो वापस आए

अपने ही घर में उन्हें कोई शनासा न मिला

हम भी जा निकले थे सूरज के नगर में इक दिन

वो अंधेरा था वहाँ अपना भी साया न मिला

तिश्ना-लब यूँ तो ज़माने में कभी हम न रहे

प्यास जो दिल की बुझा देता वो दरिया न मिला

मिल गए हम को सनम-ख़ानों में कितने ही ख़ुदा

ढूँडने पर कोई बंदा ही ख़ुदा का न मिला

आप के शहर में पेड़ों का नहीं कोई शुमार

दो घड़ी रुकने को लेकिन कहीं साया न मिला

सब्ज़ पत्तों से मिला हम को बहारों का सुराग़

शाख़-ए-नाज़ुक पे मगर कोई शगूफ़ा न मिला

मुस्तहक़ हम तिरी रहमत के न होने पाए

तेरी दुनिया में कोई उज़्र ख़ता का न मिला

ख़ुद-नुमाई के भी इस दौर में हम को 'साहिर'

कोई क़ातिल न मिला कोई मसीहा न मिला

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In Hindi By Famous Poet Sahir Hoshiyarpuri. is written by Sahir Hoshiyarpuri. Complete Poem in Hindi by Sahir Hoshiyarpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.