बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
बस फ़र्क़ इस क़दर है गुनाह ओ सवाब में
पीरी में वो रवा है ये जाएज़ शबाब में
तासीर-ए-जज़्ब-ए-शौक़ का ये सेहर देखिए
ख़ुद आ गए हैं वो मिरे ख़त के जवाब में
आख़िर तड़प तड़प के ये ख़ामोश हो गया
दिल को सुकून मिल ही गया इज़्तिराब में
आँखें मिला के या तो इनायत हो एक जाम
या ज़हर ही मिला दो हमारी शराब में
रुख़ आफ़्ताब होंट कँवल चाल हश्र-ख़ेज़
किस शय की अब कमी है तुम्हारे शबाब में
दुनिया में ढूँढते रहे हम राहतें अबस
दुनिया की राहतें तो हैं तेरे इताब में
'साहिर' अजीब शय है मोहब्बत का दर्द भी
दिल मुब्तला है एक मुसलसल अज़ाब में
(758) Peoples Rate This