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समद को सरापा सनम देखते हैं - साहिर देहल्वी कविता - Darsaal

समद को सरापा सनम देखते हैं

समद को सरापा सनम देखते हैं

मुसम्मा को अस्मा में हम देखते हैं

तुझे कैफ़-ए-मस्ती में हम देखते हैं

सलासा नज़र का अदम देखते हैं

तिरा हुस्न-ए-औसाफ़ हम देखते हैं

फ़ना में बक़ा दम-ब-दम देखते हैं

जो हैं ख़ाली-ओ-पुर से सर-मस्त-ए-नग़मा

हम-आहंगी-ए-कैफ़-ओ-कम देखते हैं

नज़र-गाह तेरी है आईना-दिल

तुझे हैरती हो के हम देखते हैं

फ़ना है फ़ना मुक़तज़ा-ए-मोहब्बत

तक़ाज़ा-ए-उल्फ़त को हम देखते हैं

गुबार-ए-दिल-ओ-दीदा जो पाक कर दे

हम उस अश्क-ए-शबनम को यम देखते हैं

उठा जब से पिंदार-ए-हस्ती का पर्दा

तुझे नूर-ए-वहदत में हम देखते हैं

मकीन-ए-मकाँ ला-मकानी है 'साहिर'

हम अंदाज़-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Sahir Dehlavi. is written by Sahir Dehlavi. Complete Poem in Hindi by Sahir Dehlavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.