दिल की तस्कीन को काफ़ी है परेशाँ होना
दिल की तस्कीन को काफ़ी है परेशाँ होना
है तवक्कुल ब-ख़ुदा बे-सर-ओ-सामाँ होना
यूँ तो हर दीन में है साहब-ए-ईमाँ होना
हम को इक बुत ने सिखाया है मुसलमाँ होना
ऐ परी-रू तिरे दीवाने का ईमाँ क्या है
इक निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ पे क़ुर्बां होना
कोर है चश्म जिसे दावा-ए-बीनाई है
शर्त-ए-अव्वल है जहाँ दीदा-ए-हैराँ होना
हम से रिंदान-ए-बला-नोश का है शुर्ब-ए-मुदाम
दुर्द-आशाम-ए-मय-ए-कुल्फ़त-ए-हिज्राँ होना
वक़्फ़-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा चाहिए दिल आशिक़ का
'साहिर' आसान नहीं बंदा-ए-जानाँ होना
(560) Peoples Rate This