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दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़ - साहिर देहल्वी कविता - Darsaal

दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़

दैर-ओ-हरम हैं मंज़र-ए-आईन-ए-इख़तिलाफ़

हक़ पर सदा नज़र है मिरी हीन-ए-इख़्तिलाफ़

बैरून-ए-दर हैं सूरत-ओ-मा'नी के पर्दा-दार

हैं पर्दा-ए-ख़िफ़ा में क़वानीन-ए-इख़तिलाफ़

है बरक़रार गर्दिश-ए-दौरान-ए-रोज़गार

नैरंगी-ए-ख़याल है आईन-ए-इख़्तिलाफ़

मम्नून-ए-रास्ती है हर इक नुक़्ता-ए-नज़र

मद्द-ए-नज़र जहाँ में है तमकीन-ए-इख़तिलाफ़

क्या पारा-हा-ए-पैरहन-ए-उन्स बख़िया हों

जब हों उधेड़-बुन में मजानीन-ए-इख़्तिलाफ़

लाज़िम हमें है क़त-ए-नज़र मदह-ओ-ज़म से अब

तहसीन-ए-इत्तिफ़ाक़ है नफ़रीन-ए-इख़्तिलाफ़

दिलदारियाँ कहाँ हैं वो 'साहिर' कभी जो थीं

ख़ातिर-शिकन हैं अब तो मज़ामीन-ए-इख़्तिलाफ़

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In Hindi By Famous Poet Sahir Dehlavi. is written by Sahir Dehlavi. Complete Poem in Hindi by Sahir Dehlavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.