चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद
चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद
मय-कदा है और मस्ती अब तो हरचे बादा-बाद
मिल-मिला के दोनों ने दिल को कर दिया बरबाद
हुस्न ने किया बे-ख़ुद इश्क़ ने किया आज़ाद
मेरा टूटा-फूटा दिल बन गया वतन उस का
बे-वतन था आवारा इश्क़-ए-खानुमा-बरबाद
मस्ती-ए-अना लैला कार-ए-इश्क़-ए-मजनूँ है
कैफ़-ए-वस्ल-ए-शीरीं है नक़्श-ए-तेशा-ए-फ़रहाद
जिस्म-ओ-जान का इल्हाक़ वज्ह-ए-रंज-ओ-राहत है
बंद-ए-शादी-ओ-ग़म से जान-ए-पाक है आज़ाद
शौक़ और तनफ़्फ़ुर में राज़ उस का पिन्हाँ है
है कोई अगर दिल-गीर है अगर कोई दिल-शाद
ग़फ़लत और नादानी वज्ह-ए-शौक़-ओ-नफ़रत है
है जो ऐन-ए-इरफ़ाँ में बे-सबात-ओ-बे-बुनियाद
बंद-ए-रंज-ओ-राहत से फ़िक्र-ए-शौक़-ओ-नफ़रत से
क़ैद-ए-जेहल-ओ-ग़फ़लत से ख़ुद-शनास है आज़ाद
जल्वा उस का ऐ 'साहिर' चश्म-ए-पाक-बीं से देख
हुस्न-ए-ला-यज़ाली से शश-जहात हैं आबाद
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