ख़ुदा के वास्ते अब बे-रुख़ी से काम न ले
ख़ुदा के वास्ते अब बे-रुख़ी से काम न ले
तड़प के फिर कोई दामन को तेरे थाम न ले
बस एक सज्दा-ए-शुकराना पा-ए-नाज़ुक पर
ये मै-कदा है यहाँ पर ख़ुदा का नाम न ले
ज़माने भर में हैं चर्चे मिरी तबाही के
मैं डर रहा हूँ कहीं कोई तेरा नाम न ले
मिटा दो शौक़ से मुझ को मगर कहीं तुम से
ज़माना मेरी तबाही का इंतिक़ाम न ले
जिसे तू देख ले इक बार मस्त नज़रों से
वो उम्र भर कभी हाथों में अपने जाम न ले
रखूँ उमीद-ए-करम उस से अब मैं क्या 'साहिर'
कि जब नज़र से भी ज़ालिम मिरा सलाम न ले
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