उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था
क्यूँ फिर इस तर्क-ए-तअल्लुक़ से पशेमान था मैं
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शेर गुफा से निकलेगा
नक़्श डरेगा जंगल में
क्या परिंदे लौट कर आए नहीं
आँसू
असासा
आँख से आँसू टपका होगा
किसी आईने का
अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
उस की आँखों में थी गहराई बहुत
ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो
शफ़्फ़ाफ़ रंग