किस तसव्वुर के तहत रब्त की मंज़िल में रहा
किस वसीले के तअस्सुर का निगहबान था मैं
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अब के वो ऐसे सफ़र पर क्या गए
ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो
किसी आईने का
रो पड़ीं आँखें बहुत 'साहिल' मिरी
कल तलक सहरा बसा था आँख में
मकड़ियों ने जब कहीं जाला तना
चीख़ती गाती हवा का शोर था
क्या परिंदे लौट कर आए नहीं
आँख से आँसू टपका होगा
आज कुआँ भी चीख़ उठा है
धूप थी साया उठा कर रख दिया
उन से ऐ दोस्त मिरा यूँ कोई रिश्ता तो न था