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उसे यक़ीं मिरी बातों पे अब न आएगा - साहिबा शहरयार कविता - Darsaal

उसे यक़ीं मिरी बातों पे अब न आएगा

उसे यक़ीं मिरी बातों पे अब न आएगा

मिरा लहू ही मेरे बा'द हक़ जताएगा

वो बात करने से पहले ही ज़ख़्म देता है

हर एक ज़ख़्म उसे आइना दिखाएगा

ये कैसी रस्म जिसे चाह के निभा न सके

ज़माना है ये किसी दिन बदल ही जाएगा

वो जानता ही कहाँ है मेरे क़बीले को

मेरी जड़ों को कुरेदेगा जान जाएगा

पुल सिरात से हर रोज़ है सफ़र मेरा

ये देखना है कहाँ तक वो आज़माएगा

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In Hindi By Famous Poet Sahiba Sheheryar. is written by Sahiba Sheheryar. Complete Poem in Hindi by Sahiba Sheheryar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.