Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_84efd17cf6887bde601a30f2e5c4ac81, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है - साहिबा शहरयार कविता - Darsaal

हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है

हवा ने सीने में ख़ंजर छुपा के रक्खा है

ये देखना है कि अब वार किस पे करता है

ख़बर ये आम है फिर भी ये कैसा पर्दा है

कि टूटा आइना उस ने सँभाल रक्खा है

ज़बाँ भी चुप है फ़ज़ा पर है ख़ामुशी तारी

है किस का ख़ौफ़ तुझे क्यूँ किसी से डरता है

तुम्हारे पाँव के नीचे कहीं ज़मीं ही नहीं

सफ़र का कर के तू कैसे इरादा बैठा है

हुई है शाम दरीचों पे चाँद चमके है

है किस का साया जो शब भर सिसकता रहता है

कहाँ कहाँ न परिंदों ने पँख फैलाए

मगर ये क्या कि किसी शाख़ पर ठिकाना है

(582) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sahiba Sheheryar. is written by Sahiba Sheheryar. Complete Poem in Hindi by Sahiba Sheheryar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.