सुख़न को तूल न दे अपनी एहतियाज बता
सुख़न को तूल न दे अपनी एहतियाज बता
उठा न दिल की कोई बात कल पे आज बता
खड़ा हूँ दर पे सरासीमगी के आलम में
वो मुझ से पूछ रहा है कि काम-काज बता
मुफ़ाहमत मिरी कोशिश सुपुर्दगी तिरा काम
तू अपने शहर-ए-जुनूँ का मुझे रिवाज बता
ख़ुद अपने हाथ से अपनी उड़ा चुका हूँ ख़ाक
अब और क्या हो मुकाफ़ात-ए-एहतिजाज बता
किताब-ए-दिल को मैं तरतीब दे रहा हूँ फिर
हवा-ए-ताज़ा है कैसा तिरा मिज़ाज बता
वो गाह शोला है 'सहबा' तो गाह शबनम है
कहीं पे देखा है ऐसा भी इम्तिज़ाज बता
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