शब-ए-सुरूर नई दास्ताँ विसाल-ओ-फ़िराक़
शब-ए-सुरूर नई दास्ताँ विसाल-ओ-फ़िराक़
न फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ दरमियाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
मैं उस से बात करूँ भी तो किस हवाले से
कि मुस्तआ'र मकाँ में कहाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
उसी के नाम पे जीते हैं और मरते हैं
यही है क़िस्सा-ए-आशुफ़्तगाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
वो कह गया है कि आऊँगा मुंतज़िर रहियो
मैं मुब्तला-ए-यक़ीन-ओ-गुमाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
वो पढ़ रहा था बड़े ग़ौर से लहू की सरिश्त
हर एक बूँद का सिर्र-ए-निहाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
हवा-ए-सुब्ह न जाने कहाँ कहाँ ले जाए
शब-ए-मुराद शब-ए-दरमियाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
मैं उस को हाथ लगाता भी किस तरह 'सहबा'
अजीब कश्मकश-ए-जाँ अज़ाँ विसाल-ओ-फ़िराक़
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