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बीम-ओ-रजा में क़ैद हर इक माह-ओ-साल है - सहबा वहीद कविता - Darsaal

बीम-ओ-रजा में क़ैद हर इक माह-ओ-साल है

बीम-ओ-रजा में क़ैद हर इक माह-ओ-साल है

जैसे ये ज़िंदगी भी कोई यर्ग़माल है

उलझा हूँ आती जाती सदाओं से बारहा

बिछड़ा हूँ हर नवा से कि ख़्वाब-ओ-ख़याल है

टूटा हूँ इस तरह कि बिखरता चला गया

बिखरा हूँ इस तरह कि सँवरना मुहाल है

इस जब्र-ओ-इख़्तियार से पामाल मैं भी हूँ

ऐ रूह-ए-एहतिजाज बता क्या ख़याल है

वीरान रहगुज़ार पे उड़ती है रोज़ ख़ाक

अब तक मिरी तलाश में बाद-ए-शिमाल है

सूरत-गरी के शौक़ ने गुमराह कर दिया

अब मैं मिरी जबीं मिरा दस्त-ए-सवाल है

बस यूँही मत गुज़र कभी सहबा से बात कर

कहते हैं उस से मिलना बड़ा नेक फ़ाल है

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In Hindi By Famous Poet Sahba Waheed. is written by Sahba Waheed. Complete Poem in Hindi by Sahba Waheed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.