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अहबाब भी हैं ख़ूब कि तश्हीर कर गए - सहबा वहीद कविता - Darsaal

अहबाब भी हैं ख़ूब कि तश्हीर कर गए

अहबाब भी हैं ख़ूब कि तश्हीर कर गए

मेरा सुकूत इश्क़ से ताबीर कर गए

जादू-असर थे होंट कि साग़र को चूम कर

कुछ और ही शराब की तासीर कर गए

हर उज़्व जैसे जिस्म का था बोलता हुआ

लहराए उस के हाथ कि तक़रीर कर गए

अज़-बाम ता-ब-मय-कदा गेसू धुआँ धुआँ

आलम तमाम हल्क़ा-ए-ज़ंजीर कर गए

तहरीर-ए-ख़त्त-ए-जाम से सब वा हुए रुमूज़

हम उक़्दा-ए-मियान की तदबीर कर गए

हाँ कातिबान-ए-नामा-ए-आमाल को थी कद

कुछ और मेरी फ़र्द में तहरीर कर गए

'सहबा' वो एक लफ़्ज़ था दीवार का लिखा

हम जो मिटे तो इश्क़ की तौक़ीर कर गए

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In Hindi By Famous Poet Sahba Waheed. is written by Sahba Waheed. Complete Poem in Hindi by Sahba Waheed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.