मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए
वो जिस की आरज़ू मुझे शाएर बना गई
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असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है
ख़ून ताज़ा
ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे
तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया
हर रात का ख़्वाब
पागल औरत
मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो
सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा