हमें ख़बर है ज़न-ए-फ़ाहिशा है ये दुनिया
सो हम भी साथ इसे बे-निकाह रखते हैं
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ख़ून ताज़ा
साँप सपेरा और मैं
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है
'सहबा' साहब दरिया हो तो दरिया जैसी बात करो
अगर शुऊर न हो तो बहिश्त है दुनिया
मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो
मैं बहारों के रूप में गुम था
मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ
यूँ भी हुआ इक अर्से तक इक शे'र न मुझ से तमाम हुआ
तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया