अगर शुऊर न हो तो बहिश्त है दुनिया
बड़े अज़ाब में गुज़री है आगही के साथ
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बयान-ए-लग़्ज़िश-ए-आदम न कर कि वो फ़ित्ना
सुबूत माँग रहे हैं मिरी तबाही का
मैं बहारों के रूप में गुम था
साँप सपेरा और मैं
आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ
मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ
मिरी तन्हाइयों को कौन समझे
मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो
हमें ख़बर है ज़न-ए-फ़ाहिशा है ये दुनिया
सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा
मेरे सुख़न की दाद भी उस को ही दीजिए
हर रात का ख़्वाब