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सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा - सहबा अख़्तर कविता - Darsaal

सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा

सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा

ये नफ़अ कम तो नहीं है जो इस ज़ियाँ से उठा

सफ़ीना-रानी-ए-महताब देखता कोई

कि इक तलातुम-ए-ज़ौ जू-ए-कहकहशाँ से उठा

ग़ुबार-ए-माह कि मक़्सूम था ख़लाओं का

बिखर गया तो तिरे संग-ए-आस्ताँ से उठा

ग़म-ए-ज़माना तिरे नाज़ क्या उठाऊँगा

कि नाज़-ए-दोस्त भी कम मुझ से सरगिराँ से उठा

मिरे हबीब बहुत कम-सबात है दुनिया

मिरे हबीब बस अब हाथ इम्तिहाँ से उठा

बयान-ए-लग़्ज़िश-ए-आदम न कर कि वो फ़ित्ना

मिरी ज़मीं से नहीं तेरे आसमाँ से उठा

कहाँ चले हो लिए नक़्द-ए-जान-ओ-दिल 'सहबा'

कि कारोबार-ए-वफ़ा शहर-ए-दिल-बराँ से उठा

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In Hindi By Famous Poet Sahba Akhtar. is written by Sahba Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sahba Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.