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मैं बहारों के रूप में गुम था - सहबा अख़्तर कविता - Darsaal

मैं बहारों के रूप में गुम था

मैं बहारों के रूप में गुम था

जब तुझे मुझ से कुछ तबस्सुम था

था वो अपने ही ख़ौफ़ का महकूम

जिस की आवाज़ में तहक्कुम था

वस्ल तेरा रहा न राज़ कि सुब्ह

दर-ओ-दीवार पर तबस्सुम था

मेरे शे'रों में ढल सका न कभी

जो मिरी रूह में तरन्नुम था

मैं पयम्बर न था मगर मुझ से

माह-ओ-ख़ुरशीद को तकल्लुम था

सब बहाने थे कूचा-गर्दी के

कौन तेरी तलाश में गुम था

मेरा साहिल न बन सका 'सहबा'

मेरी फ़ितरत में जो तलातुम था

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In Hindi By Famous Poet Sahba Akhtar. is written by Sahba Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sahba Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.