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फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे - सहबा अख़्तर कविता - Darsaal

फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे

फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे

जिस की वो ज़ुल्फ़ भी गवाही दे

बे-अमाँ नीम-जाँ हूँ मेरी जाँ

मुझ को आग़ोश-ए-जाँ-पनाही दे

अपनी ज़ुल्फ़ों के साए में मुझ को

एक शब की सितारा-जाही दे

दिल के उजड़े नगर को कर आबाद

इस डगर को भी कोई राही दे

मैं ने तामीर क़स्र-ए-शौक़ किया

तू इसे मुज़्दा-ए-तबाही दे

बख़्शने वाले गुल-रुख़ों को जमाल

मुझ को सामान-ए-ख़ुश-निगाही दे

मैं असीर-ए-गुमान-ए-ज़ुल्मत हूँ

ए'तिमाद-ए-सहर-ए-निगाही दे

मुजरिम-ए-इश्क़ हूँ मुझे 'सहबा'

जो सज़ा दे वो बे-गुनाही दे

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In Hindi By Famous Poet Sahba Akhtar. is written by Sahba Akhtar. Complete Poem in Hindi by Sahba Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.