Ghazals of Sahba Akhtar
नाम | सहबा अख़्तर |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Sahba Akhtar |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 1996 |
जन्म स्थान | Karachi |
यूँ भी हुआ इक अर्से तक इक शे'र न मुझ से तमाम हुआ
तुम ने कहा था चुप रहना सो चुप ने भी क्या काम किया
सवाल-ए-सुब्ह-ए-चमन ज़ुल्मत-ए-ख़िज़ाँ से उठा
मुझे मिला वो बहारों की सरख़ुशी के साथ
मुझ पे ऐसा कोई शे'र नाज़िल न हो
मैं बहारों के रूप में गुम था
कुल जहाँ इक आईना है हुस्न की तहरीर का
ख़ुद को शरर शुमार किया और जल बुझे
जिसे लिख लिख के ख़ुद भी रो पड़ा हूँ
जिसे लिख लिख के ख़ुद भी रो पड़ा हूँ
इस तरीक़े को अदावत में रवा रखता हूँ मैं
इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई
गूँज मिरे गम्भीर ख़यालों की मुझ से टकराती है
फ़र्द-ए-इसयाँ को वो सियाही दे
दोहराऊँ क्या फ़साना-ए-ख़्वाब-ओ-ख़याल को
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
असनाम-ए-माल-ओ-ज़र की परस्तिश सिखा गई
आ जा अँधेरी रातें तन्हा बिता चुका हूँ