कहना हो जो भी साफ़ कहो बे-झिजक कहो
अपनों से कोई बात छुपाता नहीं कोई
शायद किसी अदू ने तिरे कान भर दिए
वर्ना निगाह यूँ तो चुराता नहीं कोई
जिस में ज़रा भी किब्र का होता है शाइबा
उस को निगाह में कभी लाता नहीं कोई
उन को ज़रूर मुझ से लगावट है कुछ न कुछ
यूँ हाल-ए-दिल किसी को सुनाता नहीं कोई