जो हैं हवस के पुजारी वो माल-ओ-ज़र के लिए

जो हैं हवस के पुजारी वो माल-ओ-ज़र के लिए

नहीं है ख़ौफ़ उन्हें ख़ूँ का ख़ूँ बहाने में

तमाम अहद-ए-जवानी गुज़र गया यूँ ही

उन्हें हमें और हमें उन को आज़माने में

किसी से कुछ न कहेंगे हों लाख ग़म अब तो

बहुत है ज़िल्लत-ओ-रुसवाई ग़म सुनाने में

तमाम उम्र मिरा ग़म से बस रहा रिश्ता

मज़ा सा आने लगा मुझ को ज़ख़्म खाने में

सुना है रब उसे उक़्बा में बख़्श देता है

सज़ाएँ देता है जिस को 'सहर' ज़माने में

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In Hindi By Famous Poet Sahar Mahmood. is written by Sahar Mahmood. Complete Poem in Hindi by Sahar Mahmood. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.