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कब तलक हमारी सई-ए-अमल राएगाँ रहे - सग़ीर अहमद सूफ़ी कविता - Darsaal

कब तलक हमारी सई-ए-अमल राएगाँ रहे

कब तलक हमारी सई-ए-अमल राएगाँ रहे

कब तक ग़ुबार-ए-दीदा-ओ-दिल राएगाँ रहे

आसूदा-बयाँ तो हज़ारों हैं बज़्म में

लेकिन वो बद-नसीब जो तिश्ना-बयाँ रहे

है अब ज़बान-ए-ख़ल्क़ उन्हीं की फ़साना-ख़्वाँ

कल तक तिरे इ'ताब में जो बे-ज़बाँ रहे

क्या ज़िक्र ऐश-रफ़्ता-ए-अहद-ए-बहार का

ग़म भी मुझे क़ुबूल है गर जावेदाँ रहे

क्या एहतियात-ए-साग़र-ओ-मीना करूँ कि जब

बर्बादियों में साज़िश-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रहे

'सूफ़ी' चमन में कोशिश-ए-पैहम के बावजूद

जो फूल नौहा-ख़्वाँ थे यूँही नौहा-ख़्वाँ रहे

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In Hindi By Famous Poet Saghir Ahmad Sufi. is written by Saghir Ahmad Sufi. Complete Poem in Hindi by Saghir Ahmad Sufi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.