रात अंदर उतर के देखा है
रात अंदर उतर के देखा है
कितना हैरान-कुन तमाशा है
एक लम्हे को सोचने वाला
एक अर्से के बाद बोला है
मेरे बारे में जो सुना तू ने
मेरी बातों का एक हिस्सा है
शहर वालों को क्या ख़बर कि कोई
कौन से मौसमों में ज़िंदा है
जा बसी दूर भाई की औलाद
अब वही दूसरा क़बीला है
बाँट लेंगे नए घरों वाले
इस हवेली का जो असासा है
क्यूँ न दुनिया में अपनी हो वो मगन
उस ने कब आसमान देखा है
आख़िरी तजज़िया यही है 'मलाल'
आदमी दाएरों में रहता है
(673) Peoples Rate This