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ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है - सग़ीर मलाल कविता - Darsaal

ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है

ख़ुद से निकलूँ तो अलग एक समाँ होता है

और गहराई में उतरूँ तो धुआँ होता है

इतनी पेचीदगी निकली है यहाँ होने में

अब कोई चीज़ न होने का गुमाँ होता है

इक तसलसुल की रिवायत है हवा से मंसूब

ख़ाक पर उस का अमीं आब-ए-रवाँ होता है

सब सवालों के जवाब एक से हो सकते हैं

हो तो सकते हैं मगर ऐसा कहाँ होता है

साथ रह कर भी ये इक दूसरे से डरते हैं

एक बस्ती में अलग सब का मकाँ होता है

क्या अजब राज़ है होता है वो ख़ामोश 'मलाल'

जिस पे होने का कोई राज़ अयाँ होता है

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In Hindi By Famous Poet Sagheer Malal. is written by Sagheer Malal. Complete Poem in Hindi by Sagheer Malal. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.