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क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में - सग़ीर अली मुरव्वत कविता - Darsaal

क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में

क्यूँ तू ने वा किया था बंद-ए-क़बा चमन में

उड़ती फिरे है गुल से बुलबुल ख़फ़ा चमन में

हर सम्त अब सबा जो फिरती है ख़ाक उड़ाती

बुलबुल के पर पड़े हैं क्या जा-ब-जा चमन में

नर्गिस की आँख तुझ पर पड़ती है बे-तरह सी

मत वक़्त-ए-शाम जाना बहर-ए-ख़ुदा चमन में

जूँ लाला दाग़-ए-दिल याँ फिर जल उठा है शायद

जाता है सैर करने वो बेवफ़ा चमन में

जेब अपना गुल ने फाड़ा बुलबुल मुई 'मुरव्वत'

क्यूँ अपने ग़म का क़िस्सा तू ने कहा चमन में

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In Hindi By Famous Poet Sagheer Ali Murawat. is written by Sagheer Ali Murawat. Complete Poem in Hindi by Sagheer Ali Murawat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.