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वो जो मुझ से मिलता नहीं - सग़ीर अालम कविता - Darsaal

वो जो मुझ से मिलता नहीं

वो जो मुझ से मिलता नहीं

शायद मुझ को समझा नहीं

उस का ग़म है मेरा ग़म

मेरा ग़म क्यूँ उस का नहीं

अब तो ऐसा लगता है

सच भी जैसे सच्चा नहीं

उस को कैसे भूलूँ मैं

अब ये मेरे बस का नहीं

अब तो सब ही करते हैं

प्यार किसी को होता नहीं

मुझ को ज़िंदा रखता है

वो जो मुझ पे मरता नहीं

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