सोने चाँदी की चमकती हुई मीज़ानों में
मेरे जज़्बात की तस्कीन नहीं हो सकती
ज़िंदगी रोज़-ए-अज़ल से है छलकता हुआ ज़हर
ज़िंदगी लाएक़-ए-तहसीन नहीं हो सकती
Jaun Eliya
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बरगश्ता-ए-यज़्दान से कुछ भूल हुई है
चराग़-ए-तूर जलाओ बड़ा अंधेरा है
ऐ अदम के मुसाफ़िरो होशियार
साक़ी की इक निगाह के अफ़्साने बन गए
राहज़न आदमी रहनुमा आदमी
मेरे तसव्वुरात हैं तहरीरें इश्क़ की
मैं तल्ख़ी-ए-हयात से घबरा के पी गया
लोग कहते हैं रात बीत चुकी
बात फूलों की सुना करते थे
ये जो दीवाने से दो चार नज़र आते हैं
चश्म को ए'तिबार की ज़हमत
जिन से अफ़्साना-ए-हस्ती में तसलसुल था कभी